जीवन जीने की सबको आशा है
जीवन जीने की सबको आशा है
जीवन की ये एक परिभाषा है
कोई दुख को सहता है
कोई सुख में रहता है
सुख पाने की सबको आशा है
जीवन की ये परिभाषा है
कोई रोना न चाहे जीवन में
मेहनत न करना चाहे जीवन में
खुशहाली पाने की सबको आशा है
जीवन की ये परिभाषा है
पढ़ लिख कर इंसान बने
कुछ पढ़े लिखे हैवान बने
इंसान न कोई बनना चाहे
इंसानियत को अपनाने की सबको आशा हैं
जीवन की ये परिभाषा है
अच्छाई बुराई दो पहलू है जीवन के
बुरा तो हर कोई होता है
अच्छाई कोई कोई अपनाता है
जीवन की ये परिभाषा है
जाति धर्म अपवाद बन गया
लड़ाई दंगों का घर बन गया
मेरा धर्म सबसे बड़ा है ये सबको आशा है
जीवन की ये परिभाषा है
जीवन जीने की सबको आशा है -----------------
पानी की टंकी
ईंटे बालू सीमेंट सरिया,तिनका तिनका जोड़कर
पानी की टँकी बनाया मजदूरो ने मिलकर
कई दिनों तक साँचा डाला फिर बनाया खंभे
ऊँचे ऊँचे खंभे को फिर जोड़ा आपस में
मेहनत करते दिन दिन भर मजदूर
कभी ऊपर चढ़ते कभी नीचे उतरते
जान जोखिम में डाल बनाया पानी टंकी
साँचा बनाया लिंटर डाला फिर सुखाया
फिर उसके ऊपर काम सुरु किया
कितने दिन और कितने लोगों की मेहनत
मिल बनाया पानी टँकी
दूर दराज गाँवो तक फिर बिछाया पाइप
हर घर को पानी मिले, सबमें खुशियां छाई
मंत्री जी आये रिबन काटने
सब लोगों मे खुशियां छाई
घर घर मे पानी जा पहुंचा
सबने खुशीयां मनाई
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पानी की टंकी
ईंटे बालू सीमेंट सरिया,तिनका तिनका जोड़करपानी की टँकी बनाया मजदूरो ने मिलकर
कई दिनों तक साँचा डाला फिर बनाया खंभे
ऊँचे ऊँचे खंभे को फिर जोड़ा आपस में
मेहनत करते दिन दिन भर मजदूर
कभी ऊपर चढ़ते कभी नीचे उतरते
जान जोखिम में डाल बनाया पानी टंकी
साँचा बनाया लिंटर डाला फिर सुखाया
फिर उसके ऊपर काम सुरु किया
कितने दिन और कितने लोगों की मेहनत
मिल बनाया पानी टँकी
दूर दराज गाँवो तक फिर बिछाया पाइप
हर घर को पानी मिले, सबमें खुशियां छाई
मंत्री जी आये रिबन काटने
सब लोगों मे खुशियां छाई
घर घर मे पानी जा पहुंचा
सबने खुशीयां मनाई
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सुबह हो गयी
सुबह होने को आई,
मुर्गे ने बांक दिया,
चिड़िया चहचहाने लगी,
पेड़ हिलकर नाचने लगे,
ठंडी हवाएं चलने लगी,
सुबह होने को आई।।
फसलों में ओस थी,
कालिया मुस्कराने लगे,
भवँर गुनगुने लगे,
फूलों में मड़राने लगे,
पंक्षी आकाश में उड़ चले,
दाने की खोज में,
सुबह होने को आई।।
सूरज की लालिमा आयी,
किरणे बिखरने लगी,
अंधकार खोने लगा,
ओस की बूंद टपकने लगी,
सुबह होने को आई किसान काम मे जाने लगे,
कंधों में हल लिए, बैलों की जोड़ी सँग,
औरतें निकल पड़ी,
सिर पर पानी का घड़ा,
कमर में खाना लिए,
सुबह होने को आईं।।
बच्चे चहल करने लगे,
स्कूल जाने की पहल करने लगे,
कन्धों में स्कूल बैग लिए,
माँ बाप को प्रणाम किये,
सुबह हो गई,
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नफरते तो पनप रही है,
हर दिल की धड़कन में।।
न जाने क्यों ऐसा होता है,
आपस मे भाई चारा खोता है,
मेहनत सब करते हैं यारों,
फिर क्यू ऐसा होता है।।
कोई ज्यादा कोई कम पाता है।।
पढे लिखे समाज मे,
असभ्य लोग बढ़ते जाते है।।
दुराचारियो की संख्या बढ़ती जाती हैं।।
नफ़रतें तो पनप रही हैं,
हर दी कि धड़कन में।।
सरहदों में नफ़रतें होती थी,
अब घर घर मे होती है।।
गोली चलती थी सरहदों पर,
अब आपस मे चल जाती है।।
नफ़रतें तो पनप रही हैं,
हर दिल की धड़कन में।।
कोई धर्म युद्ध की नफरत फैलाते,
कोई जातिवाद की कसमें खाते,
कोई कहता मन्दिर बन जाये,
कोई कहता मस्जिद बन जाये,
ये मुद्दा है सिर्फ नफरत का,
मन्दिर मस्जिद दोनों बनवा दो,
नफरत का किस्सा मिटा दो,
नफ़रतें तो पनप रही है,
हर दिल की धड़कन में.।।
राजनीति में पड़ना नहीं,
मुद्दा बन कर उभरना नहीं,
वरना नफरत के हो जाओगे शिकार,
राजनीति लोकप्रियता और नफरत का सबसे बड़ा हथियार।।
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सर्द हवाए

ये चंचल सी सर्द हवाएं,
कपकपा देती है तन बदन को।।
मौज ले ले के चलती है,
फिकर नहीं है किसी की इन्हें,
पेड़ों के झुरमुटों को हिला देती है।।
ये चंचल सी सर्द हवाएं,
कपकपा देती हैं तन बदन को।।
दूर पहाड़ी पर कोई अलाव लगाये बैठा है,
ठिठुर रहा है सर्द हवा से,
घर से निकल नही रहे हैं बूढ़े बच्चे,
ठंड हवा के डर से,
ये चंचल सी सर्द हवाएं
कपकपा देती है तन बदन को।।
दूर पहाड़ियों से आती हैं ये मदमस्त हवाएं,
शाम होते ही सर्द हवाएं तेज चलने लगती है,
रूह तक कपकपा जाती है,
दाँत किटकिटाने लगते है,
ये चंचल सी सर्द हवाएं,
कपकपा देती हैं तन बदन को।।
पेड़ो से आवाजे आती है,हवाओं के सनसनाहट की,झुक जाते हैं पेड़ हवाओ के सामने,झुक झुककर सलाम है करतेतूफानी हवाओं को,ये चंचल सी सर्द हवाएं,कपकपा देती है तन बदन को।।
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हर दिल की धड़कन में।।
न जाने क्यों ऐसा होता है,
आपस मे भाई चारा खोता है,
मेहनत सब करते हैं यारों,
फिर क्यू ऐसा होता है।।
कोई ज्यादा कोई कम पाता है।।
पढे लिखे समाज मे,
असभ्य लोग बढ़ते जाते है।।
दुराचारियो की संख्या बढ़ती जाती हैं।।
नफ़रतें तो पनप रही हैं,
हर दी कि धड़कन में।।
सरहदों में नफ़रतें होती थी,
अब घर घर मे होती है।।
गोली चलती थी सरहदों पर,
अब आपस मे चल जाती है।।
नफ़रतें तो पनप रही हैं,
हर दिल की धड़कन में।।
कोई धर्म युद्ध की नफरत फैलाते,
कोई जातिवाद की कसमें खाते,
कोई कहता मन्दिर बन जाये,
कोई कहता मस्जिद बन जाये,
ये मुद्दा है सिर्फ नफरत का,
मन्दिर मस्जिद दोनों बनवा दो,
नफरत का किस्सा मिटा दो,
नफ़रतें तो पनप रही है,
हर दिल की धड़कन में.।।
राजनीति में पड़ना नहीं,
मुद्दा बन कर उभरना नहीं,
वरना नफरत के हो जाओगे शिकार,
राजनीति लोकप्रियता और नफरत का सबसे बड़ा हथियार।।
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कुम्भ मेला
प्रयागराज में भीड़ लगी है,
भक्तों की टोली की।।
हर हर गंगे बोल रहे हैं,
भक्तों की टोली से।।
बारह साल में आता है कुम्भ मेला।।
मस्त मलंग हो टिका लगया,
भस्म लगी माथे पर।।
हाँथ में लेकर चिलम,
धुँआ छोड रहे चारों तरफ़।।
नागाओं ने जटा बढ़ाया,
रुद्राक्ष के माला पहने,
दिख रहे अलग अलग।।
प्रयागराज में भीड़ लगी है,
भक्तों की टोली की।।
बारह साल में आता है कुम्भ मेला।।
गंगा जमुुना सरस्वती का,
यहाँ पावन संगम है।।
चमक रहा है प्रयागराज,
चकाचौंध रौशनी से।।
गेरुआ रंग से सजा हुआ है,
संगम तट स्थल।।
साधु संतों की भीड़ लगी है,
भस्म लगाये बैठे हैं,
हाँथो त्रिसूल और डमरू लिए,
धुनी रामये बैठे हैं।।
यग्ग हवन होते रहते है,
गंगा जमुना के तट पर।।
नावों में सैर है करते,
संगम के बीच मे।।
संख नाद होते रहते हैं,
भक्तों के इस भीड़ में।।
यहाँ गंगा जमुना सरस्वती है मिलती,
संगम वो कहलाता है।।
प्रयागराज की शोभा बढ़ती,
तीनों नदियों के मेल से।।
पग पग भीड़ लगी भारी है,
पग रखने की जगह नहीं।।
हवन कुण्ड की सुद्ध हवा से,
महक रहा है प्रयागराज,
फूलों की मालाये डालें।।
सजा हुआ है प्रयागराज।।
बारह साल में आता है कुम्भ मेला।।
भक्तों की टोली की।।
हर हर गंगे बोल रहे हैं,
भक्तों की टोली से।।
बारह साल में आता है कुम्भ मेला।।
मस्त मलंग हो टिका लगया,
भस्म लगी माथे पर।।
हाँथ में लेकर चिलम,
धुँआ छोड रहे चारों तरफ़।।
नागाओं ने जटा बढ़ाया,
रुद्राक्ष के माला पहने,
दिख रहे अलग अलग।।
प्रयागराज में भीड़ लगी है,
भक्तों की टोली की।।
बारह साल में आता है कुम्भ मेला।।

यहाँ पावन संगम है।।
चमक रहा है प्रयागराज,
चकाचौंध रौशनी से।।
गेरुआ रंग से सजा हुआ है,
संगम तट स्थल।।
साधु संतों की भीड़ लगी है,
भस्म लगाये बैठे हैं,
हाँथो त्रिसूल और डमरू लिए,
धुनी रामये बैठे हैं।।
यग्ग हवन होते रहते है,
गंगा जमुना के तट पर।।
नावों में सैर है करते,
संगम के बीच मे।।
संख नाद होते रहते हैं,
भक्तों के इस भीड़ में।।
यहाँ गंगा जमुना सरस्वती है मिलती,
संगम वो कहलाता है।।
प्रयागराज की शोभा बढ़ती,
तीनों नदियों के मेल से।।
पग पग भीड़ लगी भारी है,
पग रखने की जगह नहीं।।
हवन कुण्ड की सुद्ध हवा से,
महक रहा है प्रयागराज,
फूलों की मालाये डालें।।
सजा हुआ है प्रयागराज।।
बारह साल में आता है कुम्भ मेला।।
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मकरसंक्रांति
हिन्दू धर्म का पावन पर्व,है मकर संक्रांति का पर्व।।
इस दिन सूर्य दक्षिणायन से,
उत्तरायण में आता है।।
दक्षिणायन देवताओं की रात्रि मानी जाती है,
उत्तरायण देवताओं का दिन ।।
सूर्यदेव की पूजा भी की जाती है,
सुभ मुहूर्त देख कर ठन्डे पानी से नहाया जाता है।।
गंगा जमुना नदियों में डुबकी लगाई जाती है।।
चावल दाल की खिचड़ी देवताओं में चढ़ाई जाती हैं,
बच्चों में खुशहाली दिखाई देती हैं,
रंग बिरंगी पतंगे उड़ाई जाती है,
हर घर मे खिचड़ी खाई जाती है,
हिंदू धर्म का पावन पर्व,
है मकर संक्रांति का पर्व।।
गिल्ली डंडा का खेल भी खेला जाता है।।
गुड़ और तिल खाया जाता है।।
गंगा तट पर खिचडी चढ़ाई जाती है।।
हिन्दू धर्म का पावन पर्व,
है मकर संक्रांति का पर्व।।
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ये कहानी है प्रेम की
लड़ झगड़ सकते नहीं,ये भी कहानी है प्रेम की।।
लड़ झगड़ कर जो जिंदगी बिताये,
वो भी कहानी है प्रेम की।।
आँसू बहाकर जो कह न पाये,
वो भी कहानी है प्रेम की।।
मुस्कुरा कर जो कह दिया,
जिंदगानी हो प्रेम की।।
कभी हँसाया कभी रुलाया,
मोहब्बत में ऐसा होता हैं,
कोई रात भर जागता है,
कोई दिन में भी बेसुध होकर सोता है ।।
ये अपनी अपनी परिभाषा है।।
ये भी कहानी है प्रेम की।।
कोई प्यार में राहे तकता,
कोई प्यार में दारू चखता,
दारू वाला तारीफे करता,
पर उसको मालूम नहीं,
मैन क्या तारीफें है की,
ये भी कहानी है प्रेम की।।
तू न मिली मुझको तो,
कोई कहता मर जाऊँगा,
कोई कहता मार डालूँगा,
प्यार में कोई क़ातिल बन जाये।।
मेरी नजर में प्यार नहीं।।
ओझल होते ही मेरी आँखें,
उसको ढूढ़ने लगती हैं,
वो जब होता मेरे सामने,
नजर मेरी झुक जाती हैं।।
कभी कभी वह रूठ है जाता।।
ये भी कहानी है प्रेम की।।
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दहकती आग
मन्जर मई माह का था,चौबीस तारीख 2004 का।।
दिन सोमवार का था।।
गर्मी बहुत पड़ रही थी,
दोपहर में लोग अपने अपने घरों में सो रहे थे।।
समय सवा एक बजे का समय।।
अचानक एक आग की चिन्गारी निकली,
जो पूरे गाँव को पल भर में राख कर दिया।।
किसी को सम्भलने का मौका नही दिया।।
वो दहकती आग की लपटों ने,
कई मासूमो की जान ले ली।।
न जाने कितने जानवर जल कर राख हो गए,
एक औरत ने पड़ोसी को जगाने गयी ।।
और आग ली लपटों के आगोश में खो गयी।।
बाप ने बेटे को बचाने में जल गए,
पूरे गाँव मे अफरातफरी मच गई।।
गाँव वाले पानी से आग बुझाने में लगे रहे।।
पर वो दहकती आग की लपटों के आगे किसी का बस न चला।।
फायर ब्रिगेड बुलाया गए ,
कई घन्टो के बाद आग पर काबू पाया गया।।
आदमियो के घर ढह चुके थे ,
रहने की छत नही बचीं थी।।
खाने के लिये अन्न नही था।।
कुछ परिवारों मे रोने को आदमी नही बचें थे।।
दहकती आग ने सब तबाह कर दिया था।।
कई दिनों कब कोई सो नही पाया।।
चारो तरफ आग ही दिखती थी।।
वो मचलती आग ,वो दहकती आग,
वो प्राणघातनी आग,प्रकोपनी आग।।
पड़ोसी गाँव के लोगों ने अन्न सहायत की,
सरकार ने भी कुछ मुवाबजा दिया।।
लेकिन जो नुकसान हुआ,
उसकी भरपाई नही हो सकती हैं।।
मैं दुआ करुगा ईस्वर से,
ऐसा प्रलय कही न आये।।
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किसान
कड़क धूप में,कड़क ठंड में,जो काम करे,वो है किसान।।
लालच है उनको,वर्षा आने की
वो आकाश को देखा करते है।।
कड़क धूप में,कड़क ठंड में,
बारिस में काम वो करते है।।
वो है किसान।।
लालच है उनको खाद, बिजली, पानी की,
ये थोड़ा सस्ते मिल जावे।।
दिन हो या फिर रात हो,
जो काम करे ,वो है किसान।।
लालच है उनको,फसल उनकी खूब फले,
फसल का मुवाबजा अच्छा मिले।।
जो दिन भर काम करे, वो है किसान।।
अच्छी फसल देख कर जो मुसकुरया करते हैं,
खराब फसल को देखकर जो मुरझाए रहते है।।
दिन रात खेतो जो रहते है, वो है किसान।।
लाचारी भी उनको होती हैं,
ओला कही न पड़ जाए।।
लाचारी भी उनको होती है,
सूखा कही न पड़ जाए।।
जो कभी न आराम करें, वो है किसान।।
आज देश के किसानों की हालत है गम्भीर,
रोज है करते आत्म हत्या मुद्दा है गम्भीर।।
किसानों ने जो खेती करना छोड़ दिया।।
सबको मुश्किल हो जाऐगी।।
सबसे विनती है मेरी सोचो किसान के बारे मे,
जो सबके बारे ने सोचता है वो है किसान।।
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क्या मैं बोलूँ
मैं क्या बोलूं,
क्या न बोलूं,
मुझे समझ नहीं आता है।।
किस पर बोलूं,
किन पर बोलूं,
सबसे अपना नाता हैं।।
हिंदू पर बोलूं तो पंगा होवे,
मुस्लिम पर बोलूं तो दंगा हीवे।।
मैं क्या बोलूं,
क्या न बोलूं,
नेता पर बोलूं, अभिनेता पर बोलूं।।
राजनीति बन जाती हैं।।
राम पर बोलूं रहीम पर बोलूं,
धर्म मुझे डराता हैं।।
मन्दिर जाऊ मस्जिद जाऊ,
सभी मुझको भाते हैं।।
मै क्या बोलूं,
क्या न बोलूं,
मुझे समझ नही आता हैं।।
बेटा पर बोलूं, बेटी पर बोलूं ,
उनसे सबका नाता हैं।।
दोस्त पर बोलू दुश्मन पर बोलूं।।
मुझको डर लग जाता है।।
मैं क्या बोलूं,
क्या न बोलूं,
मुझे समझ नहीं आता है।।
पशुओं पर बोलूं इंसानो पर बोलू।।
इंसानियत सब सिखलाता है।।
बलात्कारी पर बोलूं,दुराचारी पर बोलूं।।
ऐसा पाप न कोई करता है।।
कुछ मैं बोलूं ,
क्या न बोलूं,
मुझे समझ नहीं आता हैं।।
क्या न बोलूं,
मुझे समझ नहीं आता है।।
किस पर बोलूं,
किन पर बोलूं,
सबसे अपना नाता हैं।।
हिंदू पर बोलूं तो पंगा होवे,
मुस्लिम पर बोलूं तो दंगा हीवे।।
मैं क्या बोलूं,
क्या न बोलूं,
नेता पर बोलूं, अभिनेता पर बोलूं।।
राजनीति बन जाती हैं।।
राम पर बोलूं रहीम पर बोलूं,
धर्म मुझे डराता हैं।।
मन्दिर जाऊ मस्जिद जाऊ,
सभी मुझको भाते हैं।।
मै क्या बोलूं,
क्या न बोलूं,
मुझे समझ नही आता हैं।।
बेटा पर बोलूं, बेटी पर बोलूं ,
उनसे सबका नाता हैं।।
दोस्त पर बोलू दुश्मन पर बोलूं।।
मुझको डर लग जाता है।।
मैं क्या बोलूं,
क्या न बोलूं,
मुझे समझ नहीं आता है।।
पशुओं पर बोलूं इंसानो पर बोलू।।
इंसानियत सब सिखलाता है।।
बलात्कारी पर बोलूं,दुराचारी पर बोलूं।।
ऐसा पाप न कोई करता है।।
कुछ मैं बोलूं ,
क्या न बोलूं,
मुझे समझ नहीं आता हैं।।
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मैं राह तके बैठा हूँ
मैं राह तके बैठा हूँ
मैं राह तके बैठा हूँ,
तेरे एक दीदार को।।
तू दरवाजा खोले,
मुझे तेरी एक झलक मिल जाये।।
मैं राह तके बैठा हूँ,
तेरे एक दीदार को।।
तेरा मेरे रहो पर निकलना,और मुस्कुरा देंना।।
मेरे दिल की बुझती आग को फिर जला देना।।
मैं राह तके बैठा हूँ,
तेरे एक दीदार को।।
तेरी खूबसूरत नजरो का है ये जादू।।
तेरी नजर से जो मेरी नजर मिल जाये।।
मै राह तके बैठा हूँ,
तेरे एक दीदार को।।
तू जो निकले मेरे सामने से।।
तेरा रुककर मुझे इसारा देना।।
मैं राह तके बैठा हूँ,
तेरे एक दीदार को।।
तेरी आँखों का ये काजल।।
तेर पावों की खनकती पायल।।
तेरे पायल की एक खनक पाने को।।
मैं राह तके बैठा हूँ, तेरे एक दीदार को।।
तेरी मखमली चूनर का उड़ जाना।।
मैने देखा तो तेरा शर्माना।।
तेरी इस अदा पे मैं मरता हूँ।।
हर वक्त तेरा इंतजार करता हु।।
मैं राह तके बैठा हूँ,
तेरे एक दीदार को।।
तेरे बालों का बँधा जुड़ा।।
तेरे हाँथो का खनकता चूड़ा।।
मेरे नींदों को उड़ा ले जाये।।
मैं राह तके बैठा हूँ,
तेरे एक दीदार को।।
तेरे एक दीदार को।।
तू दरवाजा खोले,
मुझे तेरी एक झलक मिल जाये।।
मैं राह तके बैठा हूँ,
तेरे एक दीदार को।।
तेरा मेरे रहो पर निकलना,और मुस्कुरा देंना।।
मेरे दिल की बुझती आग को फिर जला देना।।
मैं राह तके बैठा हूँ,
तेरे एक दीदार को।।
तेरी खूबसूरत नजरो का है ये जादू।।
तेरी नजर से जो मेरी नजर मिल जाये।।
मै राह तके बैठा हूँ,
तेरे एक दीदार को।।
तू जो निकले मेरे सामने से।।
तेरा रुककर मुझे इसारा देना।।
मैं राह तके बैठा हूँ,
तेरे एक दीदार को।।
तेरी आँखों का ये काजल।।
तेर पावों की खनकती पायल।।
तेरे पायल की एक खनक पाने को।।
मैं राह तके बैठा हूँ, तेरे एक दीदार को।।
तेरी मखमली चूनर का उड़ जाना।।
मैने देखा तो तेरा शर्माना।।
तेरी इस अदा पे मैं मरता हूँ।।
हर वक्त तेरा इंतजार करता हु।।
मैं राह तके बैठा हूँ,
तेरे एक दीदार को।।
तेरे बालों का बँधा जुड़ा।।
तेरे हाँथो का खनकता चूड़ा।।
मेरे नींदों को उड़ा ले जाये।।
मैं राह तके बैठा हूँ,
तेरे एक दीदार को।।
मैं राह तके बैठा हूँ–
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बिटिया रानी
छोटे-छोटे पैरों से चल कर,
पूरे घर मे सैर कर आती है।।
उंगली मेरी वो पकड़ कर,
पापा कहकर बुलाती है।।
वो नन्ही बिटिया रानी मेरी,
सबको खूब हँसाती है।।
निश्छल होकर बातें करती,
वो जग से अनजानी है।।
निर्भय होकर खेला करती,
जैसे यहीं सयानी है।।
वो नन्ही बिटिया रानी मेरी,
सबको खूब हँसाती है।।
वो बातें ऐसे है करती,
जैसे वही सायानी है।।
उसके पैरों की आहट से,
मेरे मन को आराम मिला।।
उसकी मुख से पापा सुनकर,
मेरे जीवन को सम्मान मिला।।
वो नन्ही बिटिया रानी मेरी,
सबको खूब हँसाती हैं।।
वो चंचल सुहृदय सी बाला,
तितली सग खेला करती है।।
नन्हे-नन्हे हाँथो से वो,
चिड़ियों को दाना देती है।।
वो नन्ही बिटिया रानी मेरी,
सबको खूब हँसती है।।
पूरे घर मे सैर कर आती है।।
उंगली मेरी वो पकड़ कर,
पापा कहकर बुलाती है।।
वो नन्ही बिटिया रानी मेरी,
सबको खूब हँसाती है।।
निश्छल होकर बातें करती,
वो जग से अनजानी है।।
निर्भय होकर खेला करती,
जैसे यहीं सयानी है।।
वो नन्ही बिटिया रानी मेरी,
सबको खूब हँसाती है।।
वो बातें ऐसे है करती,
जैसे वही सायानी है।।
उसके पैरों की आहट से,
मेरे मन को आराम मिला।।
उसकी मुख से पापा सुनकर,
मेरे जीवन को सम्मान मिला।।
वो नन्ही बिटिया रानी मेरी,
सबको खूब हँसाती हैं।।
वो चंचल सुहृदय सी बाला,
तितली सग खेला करती है।।
नन्हे-नन्हे हाँथो से वो,
चिड़ियों को दाना देती है।।
वो नन्ही बिटिया रानी मेरी,
सबको खूब हँसती है।।
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हैप्पी न्यू ईयर
नया साल है
नया जोश है
यार नई है जवानी
नया खून है
नये लोग हैं
यार नई है कहानी
नये साल पे,
नये लोग हम मस्ती खूब करेंगे
पार्टी सार्टी धमाल चौकड़ी खूब करेंगे
मुर्गा दारू सँग एन्जॉय करेगें
नया साल है
नया जोश है
यार नई है जवानी
न्यू ईयर को विस् हम करेगें
मैसेज दोस्तों को करेगें
रात भर डान्स होगा
गर्ल फ्रेंड संग रोमांस होगा
हैप्पी-हैप्पी-हैप्पी रहेगें
नया साल है
नये लोग हैं
यार नई है जवानी
नया साल मुबारक हो
हैप्पी न्यू ईयर
नया जोश है
यार नई है जवानी
नया खून है
नये लोग हैं
यार नई है कहानी
नये साल पे,
नये लोग हम मस्ती खूब करेंगे
पार्टी सार्टी धमाल चौकड़ी खूब करेंगे
मुर्गा दारू सँग एन्जॉय करेगें
नया साल है
नया जोश है
यार नई है जवानी
न्यू ईयर को विस् हम करेगें
मैसेज दोस्तों को करेगें
रात भर डान्स होगा
गर्ल फ्रेंड संग रोमांस होगा
हैप्पी-हैप्पी-हैप्पी रहेगें
नया साल है
नये लोग हैं
यार नई है जवानी
नया साल मुबारक हो
हैप्पी न्यू ईयर
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सर्दी आ गई
सर्दी आ गई
धुन्ध छाने लगा
ओठ कपकपाने लगे
हाथ ठिठुरने लगे
सर्दी आ गई।।
पानी ठंडा हो गया
नहाने में डर लगने लगा
रजाई लगने लगी
सर्दी आ गई।।
आग सेकने लगे
गर्म पानी पीने लगे
ठण्ड से बचने लगें
धूप कम लगने लगी
सर्दी आ गई।।
कोहरे से दिखाई कम देने लगा
ट्रेन लेट होने लगी
Accident का खतरा बढ़ गया
स्वेटर ,टोपी पहने लगे
सर्दी आ गई
धुन्ध छाने लगा
ओठ कपकपाने लगे
हाथ ठिठुरने लगे
सर्दी आ गई।।
पानी ठंडा हो गया
नहाने में डर लगने लगा
रजाई लगने लगी
सर्दी आ गई।।
आग सेकने लगे
गर्म पानी पीने लगे
ठण्ड से बचने लगें
धूप कम लगने लगी
सर्दी आ गई।।
कोहरे से दिखाई कम देने लगा
ट्रेन लेट होने लगी
Accident का खतरा बढ़ गया
स्वेटर ,टोपी पहने लगे
सर्दी आ गई
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रोते पेड़
रोते हुए पेड़ ने कहा,
मैं कटने के डर से नही रो रहा हूँ।
रो रहा हूँ मै मनुष्य की बर्बरता से,
डर रहा हूँ मैं कैसे जिएगा मनुष्य हमारे बिना।
रो रहा हूँ मैं इसलिए,
जिसे मैंने छाँव दी
जिसे हमने फल दिया
जिसे हमने शुद्ध हवा दिया
वही मनुष्य हमें काट दिया
रो रहा हूँ मै इसलिए,
जिसके लिए हमने धूप सही
जिसके लिये हम तूफ़ान सहे
जिसके लिए हम वर्षा लाये
वही मनुष्य हमें काट रहे
रो रहा हूँ मैं इसलिए,
मनुष्य अपनी मनमानी से जंगल रहा हैं काट
जिससे पेड़ पौधें हो रहे हैं समाप्त
ये देखकर मेरा मन रो रहा हैं
विनती हैं मेरी मनुष्य से,
काटो हमे दुख नही
अपने लिये हमें बचाओ
एक पेड़ काटो तो दस पेड़ लगाओ
जंगल और जीवों को बचाओ
तभी मैं हसूंगा,
वरना रोटा रहूंगा
मैं कटने के डर से नही रो रहा हूँ।
रो रहा हूँ मै मनुष्य की बर्बरता से,
डर रहा हूँ मैं कैसे जिएगा मनुष्य हमारे बिना।
रो रहा हूँ मैं इसलिए,
जिसे मैंने छाँव दी
जिसे हमने फल दिया
जिसे हमने शुद्ध हवा दिया
वही मनुष्य हमें काट दिया
रो रहा हूँ मै इसलिए,
जिसके लिए हमने धूप सही
जिसके लिये हम तूफ़ान सहे
जिसके लिए हम वर्षा लाये
वही मनुष्य हमें काट रहे
रो रहा हूँ मैं इसलिए,
मनुष्य अपनी मनमानी से जंगल रहा हैं काट
जिससे पेड़ पौधें हो रहे हैं समाप्त
ये देखकर मेरा मन रो रहा हैं
विनती हैं मेरी मनुष्य से,
काटो हमे दुख नही
अपने लिये हमें बचाओ
एक पेड़ काटो तो दस पेड़ लगाओ
जंगल और जीवों को बचाओ
तभी मैं हसूंगा,
वरना रोटा रहूंगा
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पुराना साल नया साल
पुराने साल को बिदाई,
नये साल को बधाई,
पुराना साल बीत गया
जो बीता अच्छा बीता
पुराने साल की पार्टी करेगें
पुराने साल को बिदाई
नये साल को बधाई
नए साल का आगाज़ करेगे
नये साल के आने में भी पार्टी करेंगे
नये साल की बधाई देगे
नया साल खुशियों संग आता रहे
पुराने साल की बिदाई
नए साल को बधाई
दोस्तों संग मौज करेगें
सबको हैप्पी न्यू ईयर कहेगें
पुराने साल को बिदाई
नए साल को बधाई
नये साल को बधाई,
पुराना साल बीत गया
जो बीता अच्छा बीता
पुराने साल की पार्टी करेगें
पुराने साल को बिदाई
नये साल को बधाई
नए साल का आगाज़ करेगे
नये साल के आने में भी पार्टी करेंगे
नये साल की बधाई देगे
नया साल खुशियों संग आता रहे
पुराने साल की बिदाई
नए साल को बधाई
दोस्तों संग मौज करेगें
सबको हैप्पी न्यू ईयर कहेगें
पुराने साल को बिदाई
नए साल को बधाई
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बुढ़ापा
शरीर कमजोर होता हैं
कमर झुक जातीहै
जब बुढ़ापा आता हैं
मुँह में दाँत नही होते
आँखों मे रोशनी नही होती
हाथ हिलने लगते है
जब बुढ़ापा आता हैं
न अपना शरीर साथ देता है
न कोई सहारा देता हैं
सबके लिए बोझ बन जाते हैं
जब बुढ़ापा आता हैं
बीमारिया पकड लेती हैं
ठंडी जकड़ लेती हैं
नींद नहीं आती हैं
जब बुढ़ापा आता हैं
लालच होती बच्चों जैसी
हरकत होती बच्चों जैसी
ज्यादा खा नहीं सकते हैं
पेट खराब हो जाता हैं
जब बुढ़ापा आता है
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आलसी के चार काम
आलसी के चार काम,
पहला काम आराम,
दूसरा काम छोड़ यार,
तीसरा काम कल करेगें,
चौथा काम नाकाम,
आलसी के चार काम।।
आलस अलसी की सबसे बडी बिमारी ,
शूरू हो जाती हैं गढ्ढे मे गिरने की तैयारी,
आलस जो छोडेगा खुशियों से नाता जोडेगा,
आलसी के चार काम/चरन सिहं
पहला काम आराम,
दूसरा काम छोड़ यार,
तीसरा काम कल करेगें,
चौथा काम नाकाम,
आलसी के चार काम।।
आलस अलसी की सबसे बडी बिमारी ,
शूरू हो जाती हैं गढ्ढे मे गिरने की तैयारी,
आलस जो छोडेगा खुशियों से नाता जोडेगा,
आलसी के चार काम/चरन सिहं
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भीषण गर्मी
भीषण गर्मी पड़ रही तालाब नाले गये सब सूख
भोर हुई सूरज निकला तपने लगी धूप
जमीन पर पैर नहीं रख सकते तलवे में पड़ गये छाले
भीषण गर्मी पड़ रही सुख गए सब नदी नाले
त्राहि त्राहि कर पशु पक्षी और रहे हाफ़
पानी पीने को भी नहीं मिल रहा
तालाब नदी नाले से पानी हो गया साफ
घर मे कूलर भी काम नहीं कर रहे
किसान खेतो में काम से मर रहे
लू से झुलस गया चेहरा
गर्मी ने डाला ऐसा पहरा
घर से बाहर निकल नहीं सकते
घर के अन्दर आराम से रह नहीं सकते।
भोर हुई सूरज निकला तपने लगी धूप
जमीन पर पैर नहीं रख सकते तलवे में पड़ गये छाले
भीषण गर्मी पड़ रही सुख गए सब नदी नाले
त्राहि त्राहि कर पशु पक्षी और रहे हाफ़
पानी पीने को भी नहीं मिल रहा
तालाब नदी नाले से पानी हो गया साफ
घर मे कूलर भी काम नहीं कर रहे
किसान खेतो में काम से मर रहे
लू से झुलस गया चेहरा
गर्मी ने डाला ऐसा पहरा
घर से बाहर निकल नहीं सकते
घर के अन्दर आराम से रह नहीं सकते।
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Covid-19
Covid 19
लोग कहते हैं मुझको covid 19मैं हूं वाइरस का डॉन
चीन से मैं आया हूँ
मेरा घर हैं शहर बुहान
चमगादड़,साँप से मैं निकला वाइरस हूँ
मेरे से कोई नही बच सकता है मैं ऐसा वाइरस हूँ
सोशल डिस्टेंस जो रखेगा
वही कोरोना से बचेगा
घण्टे घण्टे में साबुन से हाथ धोना हैं जरूरी
कोरोना से बचने के लिए सेनिटाइजर है जरूरी
घर से निकलने से पहले मुख में मास्क लगाओ
बहुत जरूरी हो तभी घर से बाहर जाओ
कोरोना से डरने को जरूरत नही है
कोरोना से बचने के लिये सावधानी सही हैं
हमें कोरोना को हराना हैं
सभी लोग सोशल डिस्टेंस बनाना है
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