अभागा
मैं और मेरे दोस्त एकबार अरुणांचल की पहाड़ियों मे घुमने गये।हम जब तेजू से आगे जब चलते हैं।तो पहड़ियो का शिलशिला शुरू हो जाता है।मैं और मेरे दोस्तों ने खाने पीने की सामग्री अपने साथ रखें हुए थे।हमने अपनी रिजर्व गाड़ी कर रखी थी।हमे जहा कोई सुन्दर द्रश्य दिखता रुक कर फ़ोटो खीचते सेल्फी लेते और फिर आगे बढ़ते थे।मौज मस्ती के साथ जा रहे थे।पहाड़ियों को काट काट कर सड़क बनाई गई थी।कही सड़क अच्छी तो कही खराब थी।सारी पहाड़िया पेडों से ढकी हुई थीं।जैसे जैसे हम आगे बढ़ते जाते थे।बदलो को छूते जाते थे।पहाड़ों से नीचे का दृश्य मनोरम लगता था।शान्त माहौल था।कही कही मिथून गाय मिल जाते थे।पहाड़ो की ऊँचाई पर बादल हमे छू कर निकल जाते।मौसम हल्का ठण्डा हो जाता था।और नया अहसास दिला जाता था।
हम लोग हाईलॉन्ग पहुंचे।वहा खाना खाकर वायलॉन्ग के लिए रवाना हुए।मौसम हसीन था।पहाड़ियों में अलग अलग तरह के पेड़ दिखाई दे ही रहे थे।अलग अलग पहाड़ियों से छोटे छोटे झरने भी बह रहे थे।लोहतक झील का कलकल मन को बहुत ही भा रहा था।झील के चारो तरफ पत्थर और बालू दिख रही थी।अजीब दृश्य को देखकर मन खुशहाल हो रहा था ।हम लोग वाईलोंग पहुंच गए।अब किबितू जाना था।अब पहाड़ो की ऊंचाई और नीचाई को पर करते हुए हम किबितू पहुचे।एक रात वह रुके थे।
सुबह सुबह जब हम लोग घूमने निकले तो देखा कि एक दस साल का बच्चा हाथ में खुकरी और शिर में एक टोकरी जिसमें चीड़ की टहनियों को काटकर लेकर आ रहा था।उसके कपड़े फ़टे हुए और मैले हैं।उसके मुख पर तेज है।वह कर्मठ हैं।अपने धुन में काम पर लगा हुआ था।हमें देख कर स्वयं बोला सर आप लोग आते नही हो।हम लोग अचंभित हो गये।एक छोटा बच्चा कितने इत्मिनान से हमसे बोल रहा है।उसके मुख पर अजीब सी खुशहाली हैं।
मैंने पूछा छोटू तुम्हारा नाम क्या है।उसने बताया सर बिपिन राय।फिर मैंने पूछा ये टहनियों को कहा ले जा रहे हो।उस बच्चे ने बोला।आज पचीस तारीख हैं।गोम्फा में आग जलाना हैं,लामा का पचीस तारीख हैं।आज गोम्फा में आग जलाते हैं और धुँआ देते हैं।मैंने कहा आज तो अठारह तारीख हैं।उस बच्चे ने बोला लामा की पच्चीस तारीख़ हैं।
हम लोग उस बच्चे से फिर पूछा तुम्हारे माता पिता कहा हैं।वह दुखी हो गया।मैंने कहा क्या हुआ छोटू।उसके आँखो में आँसू आ गए।उसकी आँखों मे आँसू देखकर हम भी दुखी हो गए।बिपिन ने बताया मेरे माता पिता नहीं हैं।हमको झटका लगा कि उस बच्चे के माता पिता नहीं हैं।उसने फिर बताया जब मै छोटा था।तो मेरी माँ छोड़कर चली गयी।मेरे पिता का कोई पता ही नहीं कौन हैं।यह सुनकर हम लोग गमसीन हो गए।उस अभागें बच्चे को रुला दिए।
उस ने फिर बताया गाँव के एक आदमी ने उसका पालन पोषण किया है।उस छोटे बच्चे को अपनी सारी ब्यथा पता है और वह समझदारों की तरह बात कर रहा है।वह दो पल के लिए दुखी हुआ था।फिर वैसे ही खुशहाल होकर बात करने लगा।मैंने पूछा कि कही घूमने गए हो।नही सर् मै किबिटू से कही बाहर नही गया।पड़ते हो नही सर।
जिस आदमी ने उस बच्चे का पालन पोषण मिया था वह बहुत बी नेक दिल इंसान था पर उस बच्चे को पढ़ा लिखा देता तो और भी महान काम हो जाता।वह बच्चा शायद कुछ कर जाता।पर उस अभागें लड़के की जिंदगी उसी गाँव किबितू में ही व्यतीत हो जायेगी।
दुरन्तो यात्रा
एजुकेशन सेंटर से हम जल्दी आ गए।अपना सामान हम लोगों ने लिया पानी की बोतल लिए और रेलवे स्टेशन के लिए निकल पड़े। हम लोग दोपहर एक बजे स्टेशन पहुंचे गये।आधा घंटे का समय था ट्रेन आने में।हम सभी लोगों अल्फा होटल से खाना पैक करा लिया।और सभी लोगों ने स्टेशन में आकर खाना खाया।
दोपहर को डेढ़ बजे की दुरन्तो ट्रेन थीं।ट्रेन आ गयी।हमारे बीस बाइस लोगों के ग्रुप में किसी के पास रिजर्वेशन नहीं था।अब कहा बैठा जाये ये चहल कदमी हो रही थीं।तभी अनुराग आया और ट्रेन के इंजन के ठीक पीछे का डिब्बा जो लगेज बोगी था उसकी खिड़की से अंदर घुस गया और दरवाजा खोल दिया।लगेज बोगी धूल से भरी हुई थीं।हम लोगों ने अपनी अपनी बेड सीट निकाला और बिछा कर बैठ गए।
ट्रेन चलने लगी।एक दो लोगों के पास तास की गड्डी थी।सब लोग तास खेलने लगे।गर्मी बहुत पड़ रही थीं।अपने पास जो पानी था समाप्त हो गया।ट्रेन चलती जा रही थीं।सबको प्यास जोरो की लगी थीं।पानी किसी के पास था नहीं।ट्रेन भी किसी स्टेशन में नहीं रुक रही थीं।
बड़े इंतजार के बाद लगभग शाम को छह बजे बल्लरसाह स्टेशन आया।ट्रेन दो मिनट के लिये रुकी।सारे लोगे बाहर आये।बाहर ड्रिंकिंग वाटर के टैंक से पानी पीने लगे।पानी बहुत गर्म था।मानो कोई खौलता पानी रख दिया हो टैंक में।सभी लोगों ने पानी पिया।तब तक ट्रेन चल दी फिर हम लोगों ने बैठ लिया।ट्रेन अपनी रफ्तार पकड़ लिया।सभी लोग फिर तास खेलने में ब्यस्त हो गए।
तभी अचानक हमारे दोस्त राहुल के पेट मे दर्द होने लगा।सभी को लगा हल्का फुल्का दर्द होगा।धीरे धीरे उसका दर्द बढ़ने लगा।लगभग रात को ग्यारह बजे नागपुर स्टेशन पहुंचे रात बहुत थी कहा जाते।इसलिए हमलोग ट्रेन से उतरे नहीं।राहुल के पेट में और दोस्त मालिस करते रहे।लेकिन राहुल को क्या हुआ किसी को पता न चला।उसका दर्द असहनीय हो रहा था।रात का एक एक मिनट घण्टो के बराबर लग रहा था।
बड़े इंतजार के बाद सुबह आयी ।और ट्रेन झाँसी रेलवे स्टेशन पहुंची।समय लगभग सुबह के पाँच बजे है।हम लोग ट्रेन से उतर गये।राहुल खड़ा नही हो पा रहा था।कुछ लोगों ने राहुल को उठाया और कुछ ने सब लोगों का समान लिया।एक दोस्त ने राहुल के घर मे फोन करके यह भी बता दिया कि राहुल ली तबियत खराब है।उसे हम दवा कराने ले जा रहे हैं।सब लोग स्टेशन से बाहर आ गए और एक ऑटो बुक कर एक नजदीकी हॉस्पिटल में राहुल को भर्ती कराया।
डाँक्टर ने राहुल का इलाज किया ।राहुल ठीक हो गया सभी लोगों से बात करने लगा।फिर उसको उसके घर मे बात की।सब कुछ ठीक हो गया।राहुल के नजदीकी दोस्त ने राहुल को उसके घर भेज आया।हम सभी लोग अपने अपने घर चले गये।सभी लोग खुश थे। लेकिन हमें क्या पता था कि एक दुखद घटना घटने वाली हैं।जो कभी भी भुलाई नही जा सकती।
अचानक रात को फिर राहुल के पेट मे दर्द सुरु हो गया।राहुल के घर वाले आनन फानन राहुल को 7हॉस्पिटल जो एयर फोर्स का है कानपुर में भर्ती कराया।लेकिन राहुल को कोई बचा न सका।ये खबर सुबह समाचार पत्र में निकली।सारे दोस्तों ने एक दूसरे को फोन करके जानकारी दिया।सभी लोगों के पैरों तले से जमीन खिसक सी गई।सभी के आँखो में आँसू थे।लेकिन सबसे बड़ा दुख ये था कि समाचार पत्र में लिखा था कि दोस्तों ने अपने दोस्त को जहर खिला दिया।
अगले दिन सभी को सिकन्द्राबाद जाना था।सभी लोग कानपुर स्टेशन में इकट्ठा हुए।सभी लोग निराश थे।क्योंकि सबसे प्यारा दोस्त हमसे हमेशा के लिए बिछड़ गया था।सभी एक ट्रेन में बैठे और चल दिये सिकन्द्राबाद बाद।इस घटना से कुछ दिन के लिए दोस्तों ने एक दूसरे का सहयोग काम कर दिया।हमसब सिकन्द्राबाद रेलवे स्टेशन में उतर गए और अपने ट्रेनिंग सेंटर पहुंच गए।वहां हमारे दोस्तों की कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी चलती रही।फिर सी ओ डी कानपुर में भेज दिया गया।दो तीन महीने की इन्क्वायरी के बाद जब कोई दोस्त को गलत साबित न हो पाया तो सब को अपने अपने यूनिट भेज दिया गया। लेकिन आज भी हम सभी को ये दुरन्तो यात्रा याद रही।और बम ईश्वर से यही कामना करते हैं कि ऐसी घटना किसी के साथ न हो।
डपोरशंख
एक पंडित जी थे उनकी एक पत्नी थी ।बहुत ही गरीब थे। उनका गुजर बसर भिच्छा माँग कर होता था। पंडित जी के पास खेती बाड़ी के लिए जमीन भी नहीं थी।कोई उन्हें अपने खेत में काम भी नही करने देता था। क्योंकि की पंडित जी को काम करने देने से उनको नरक नशीब होगा। पण्डित जी के बड़े भाई थे जो सम्पन्न थे उन्होंने छोटे भाई की जमीन हड़प ली थी ।इस हालत में भी वो छोटे भाई का साथ नहीं देते थे।एक पण्डित जी इस जिंदगी से तंग होकर अपनी पत्नी से बोले कि कही से भिक्षा लेकर आ जाओ मैं कही नौकरी केलिए जाता हूँ। पंडिताइन गई और पड़ोसी से भिक्षा मांगने । उन्हें भिक्षा में थोड़ा सा सत्तू मिल गया।शाम को एक जंगल मे एक कुँए के पास रुक गए।अब चलना भी उनके बस की बात नही थीं।थक कर उनका शरीर चूर चूर हो गया था।शरीर में जान नही बची थी।उन्होंने सोचा कि रात यही बिता कर सुबह फिर आगे जाऊँगा।पण्डित जी ने कुँए से पानी लिया हाँथ पैर धोया और जमीन में बैठ गए।सत्तू निकाला और सत्तू की सात गोलियां बनाई।
भगवान का भोग लगाया और बोले।
एक को खाऊं की ,दो को खाऊं, तीन को खाऊं, की चार को खाऊं, पाँच को खाऊं, की छह को खून,सात को खाऊं।उसी जंगल मे कुँए के पास गुफा में सात बौने रहते थे वो डर गए ।बौनों ने सोचा कि यह आदमी हमे खाने की बात कर रहा है।वो सातो ने पंडित जी के पैरों में गिर गए बोले हमे मत खाइये।इसके बदले में हम तुन्हें एक संख देगें जो रोज एक सोने की मुद्रा देती है।पंडित जी ने कहा कि मैं आप लोगों को नहीं खाऊँगा आप लोग मुझे वो शंख दे दो।बौनों ने बोला कि रोज सुबह नहा धोकर पूजा पाठ करके शंख से कहना पदम् शंख मुझे मुद्रा दो ।तो पदम संख एक मुद्रा दे देगी।
पंडित जी खुश हो गए।शंख को लिए अपने घर की ओर चल दिया।उनके खुशी का ठिकाना नहीं रहा।पण्डित जी अगले दिन ही अपने घर पहुँच गए।यह देख पंडिताइन गुस्सा हो गई।बोली की कुछ कम धंधा नही करना था तो घर से गये ही क्यों।पंडित जी ने सारी राम कहानी बताई और शंख को देते हुए बोले ये सोने की मुद्रा देने वाली शंख है।घर के आँगन में गाय के गोबर से लिपाई की गई।और शंख को रख कर पण्डित जी ने पूजा की और बोला कि पदम् शंख मुद्रा दे दो। पदम् शंख ने एक सोने की मुद्रा दे दिया। पंडित जी के खुशी का ठिकाना न रहा।
पंडित जी सोने की मुद्रा को बेच कर खाने पीने की सामग्री को ली आये।फिर क्या था।उसकी जिंदगी खुशहाली से काटने लगी।रोज एक सोने की मुद्रा मिल जाती थीं।उन्होंने अपना घर भी बनवा लिया।यह सब बड़े भाई को पसंद नहीं आया।वह छोटे भाई की मुखबिरी करने लगे कि जिसको एक वक्त का खाना नसीब नहीं था।वो आज ठाठ से रह रहा है।कोई तो जरुर बात है।जिससे यह अमीर बनता जा रहा है।एक दिन बड़े भी ने देख लिया कि उसको पदम् शंख मिल गयी हैं।जो सोने की मुद्रा देती है। एक रात बड़े भाई और उनकी पत्नी मिलकर पदम् शंख को चोरी कर लेते हैं और उसकी जगह दूसरी शंख रख दिया।
जब अगले दिन पण्डित जी पूजा पाठ करके पदम् शंख से कहे कि पदम शंख सोने की मुद्रा दो तो शंख ने मुद्रा दिया नही।पंडित जी बड़े असमंजस में पड़ गए।और सोचने लगे कि शायद बौनों ने मुझे बेवकूफ बनाया है।मैं उनको नही छोड़ूंगा।पंडित जी ने आननफानन पंडिताइन से बोले कि मुझे सुबह शहर जाना है।मुझे खाने को सत्तू दे देना।
सुबह होते ही पंडित जी उसी धुन में उस जंगल की ओर चल दिये जहाँ वे सात बौने मिले थे। जंगल में उस कुँए के पास पहुचते उन्हें शाम हो गई।धोड़ा आराम किया फिर सोचे कि सत्तू कहा लेता हूँ।सत्तू की सात गोले बनाये और फिर बोले ।एक को खाऊं, दो को खाऊं की तीन को खाऊं, की चार को खाऊं, पाँच को खून,छह को खाऊं की सात को खाऊं।यह सुनकर फिर सातो बौने आ गए।पंडित जी से बोले कि हमें मत खाइये।पंडित जी बोले तुम लोगों ने मुझे धोखा दिया है मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा।हमारी पदम् शंख रोज सोने की मुद्रा देती हैं।किसी ने पदम् शंख को चोरी कर लिया होगा।पंडित जी वो शंख भी साथ लाये थे।ये है तुम्हारी पदम् शंख।उस संख को देखते ही बौनों ने पहचान लिया कि ये पदम् शंख नहीं है।बौनों ने कहा यह पदम् शंख नहीं है यह दूसरी शंख है।किसी ने आपसे धोखा किया है।
बौनों ने कहा हमे मत खाईये हमारे पास एक डपोरशंख है उसे आप ले लीजिए।लेकिन वो मुद्रा देती नही है सिर्फ देने का वादा करती है।जब आप कहोगे तो कहेगी डपोरशंख डपोरशंख हमें सोने की मुद्रा दे।तो वो कहेगी की एक दू,दो दू,तीन दू चार दू...........................................सौ दू.........
तो आप बोलना बस कर डपोरशंख इतनी ज्यादा मुद्राओं का मैं क्या करूँगा।जो भी आपकी पदम् शंख को लिया होगा इससे बदल लें जाएगा।फिर पदम् शंख को सम्भाल कर रखना।पण्डित जी डपोरशंख को लिए और अपने घर के लिये चल दिये।दूसरे दिन पहुंचे तो बड़े भाई ने सोचा कि यह जरूर फि कोई चीज लाया है।पंडित जी ने अपनी पत्नी से कहा यह शंख तो पदम् शंख से कई गुना ज्यादा मुद्रये देती है।यह सब बात पण्डित जी के बड़े भी सुन रहे थे।पण्डित जी पण्डिताइन से बोले घर को जल्दी से लिपाई कर पूजा करके डपोरशंख से मुद्रा लेना है।
पण्डिताइन ने जल्दी से घर की लिपि की फिर पंडित जी पूजा के लिए बैठ गए और डपोरशंख से बोले डपोरशंख डपोरशंख हमें सोने की मुद्रा दे दो।फिर क्या डपोरशंख सुरु हो गई। एक दू, दो दू,तीन दू चार दू,पाँच दू,छह दू....................सौ दू...............पण्डित जी बोले बस महारानी बस कल देना आज मैं कहा रखूंगा इतनी मुद्रा।डपोरशंख बोली ठीक है जब चाहिये तब बता देना तब दे दूँगी।
पण्डित जी के बड़े भक यह सब सुन रहे थे ।फिर उनके में लालच आया कि पदम् शंख से डपोरशंख बदल लेते हैं।रात में फिर बड़े भाई ने चोरी से डपोरशंख को ने लिया और उसकी जगह पदमशंख को रख दिया।पंडित जी पदमशंख को पा कर खुश थे ।और बड़े भाई ने जब डपोरशंख से कहा डपोरशंखडपोरशंख हमे मुद्रा दे दोतो डपोरशंख फिर सुरु हो गई। एक दू,दो दू,तीन दू,चार दू.............................सौ दू ......दो सौ दू।पंडित जी के बड़े भाई बोले देगी भी कि सिर्फ कहती ही रहेगी।डपोरशंख बोली कि मैं डपोरशंख हूँ सोन की मुद्रा देती नही हूँ।सभी को बेवकूफ बनाती हूँ।पंडित जी के बड़े भाई ने गुस्से में डपोरशंख को जमीन में पटक दिया और डपोरशंख टूट गयी।और उनके हाँथ कुछ न लगा।
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पाँचवी कक्षा
उस समय की बात है जब मैं पँचवी कक्षा में पढ़ता था।मैं और मेरे चार दोस्त थे।मेरे दोस्तों का नाम कल्लू ,बल्लू पप्पू और राजा था।हम लोग बहुत शरारती थे।पढ़ने में मन कम लगता था।मारपीट लड़ाई करने में बड़ा मजा आता था उस समय हमारे स्कूल में एक बेवकूफी वाला खेल खेला करते थे।हमारे कक्षा में दो ग्रुप बनाकर एक दूसरे को पीटने का ।जो अकेला मिल जाता उसकी पिटाई करते थे।दूसरा ग्रुप वाला हमारे ग्रुप के लड़के को।अकेला पा कर पीटते थे। इस खेल में बड़ा मजा आता था।यह ऐसा समय होता हैं कि सारे दोस्तों को नीचा दिखाने का।और दोस्तों को गुरु जी से मार खिलाने में बड़ा मजा आता था। एक दिन की बात है,हिंदी का क्लास चल रहा था।जो हमारे गुरु जी हिंदी पढ़ाते थे उनका तकियाकलाम था, 'पढ़ते लिखते नहीं हो बाबू जी की तरह बैठे रहते हो' ।और अगर कोई गुरु जी के सामने बोल दे तक वे आगबबूला हो जाते थे। फिर क्या था यह बात पप्पू ने कहा दिया की 'पढ़ते लिखते नही हो बाबू जी की तरह बैठे रहते हो'।यह बात गुरु जी ने सुन लिया फिर क्या था उनको जैसे आग लग गयी हो।गुरु जी की आँखे लाल हो गई उन्होंने गरज कर पूंछा किसने बोला,कौन है वो इतना सुनते ही हमारा दोस्त भाग खड़ा हुआ ।मेरे सहपाठियों में से किसी ने बता दिया।कि गुरु जी पप्पू ने बोला है।गुरु जी ने आदेश दिया उस नालयक को पकड़ कर ले आओ।
जैसे बानर सेना को आदेश मिला हो लंका पर आक्रमण कर दो।वैसे ही मैं और मेरे सहपाठियों ने पप्पू का पीछा कर लिया।पप्पू दीवार लांघ कर बाहर निकाल गया लेकिन सारे सहपाठियों ने उसे धर दबोचा और उठा कर गुरु जी के सामने पेश किया। गुरु जी ने छड़ी उठाया और पप्पू की खूब पिटाई कर दिया। सारे दोस्त मुह दबाकर हस रहे थे।
कुछ दी बाद कि बात है स्कूल जाना था।मैं अपने घर से तैयार हो कर खाना खा कर समय से निकल गया आप पप्पू और उसके मामा राजा को बुलाने।ओ लोग अभी तैयार भी नहीं हुए थे।तब तक कल्लु बल्लू जो कि दोनों भाई थे आ गये। पप्पू और राजा देर करते रहे थे, स्कूल की पहली घण्टी बजने लगी थी अभी हम उनके घर मे ही थे । हम जब स्कूल के लिए घर से निकलने लगे तो दूसरी घण्टी बजने लगी ।हमें देर हो गई।स्कूल में प्रार्थना सुरु हो गई थी।फिर भी वो
लोग धीरे धीरे चल रहे थे।ये लोगो ने प्लान बनाया की आज स्कूल नही जाएगे।मैं डरने लगा मैने कहा स्कूल चलो या फिर घर चलो।वो लोग नही माने ,मैने जिद किया कि मैं स्कूल जा रहा हूँ तो उन लोगों ने कसम रख दिया कि जो आज स्कूल जाएगा उसकी तीनो लोको की कसम है फिर क्या था कसम की दर के आगे मुझे अपने घुटने टेकने पर गए।
हम लोग घर भी नही गए खेतो में छुपने की ठानी।हम लोग एक मटर के खेत मे गए मटर तोड़ने लगे,जिसका खेत था वह आ गया फिर क्या था वो लोग भाग खड़े हुए मेरे पास सभी का बस्ता था जिसमें सभी की किताबें थी मैं लेकर भागा। गिरते पड़ते एक गन्ने के खेत मे पहुंचे वहां छिप कर बैठ गये।गन्ने के खेत में अरंडी का पेड़ था जिसमें हमने अपने स्कूल बैग टांग दिए। गन्ने के खेत मे गन्ना तोड़कर खूब चूसा गया।
दोपहर को जब लंच की घंटी बजी तो लोग घर खाना खाने चल दिये। घर पहुंचा तो मेरे दादा जी खाना खा रहे थे उन्हें देख कर मैं डर गया।उन्होंने पूछा कि खाना क्यों नही ले गया।रोज भूख नही लगती थी आज लग रही थी इसलिए खाने आ गया। कहना खाकर मै जल्दी से घर से निकल गया।हम सभी रास्ते में मिल गए।फिर एक प्लान बानी की बहोरी के खेत से गाजर उखाड़ कर लेते है मेरी तो हिम्मत नहीं पड़ रही थी लेकिन दोस्तों के साथ तो नाना ही पड़ा।गाजर लेकर आए फिर गन्ने के खेत मे बैठे रहे।छुट्टी की घण्टी बजी तो हम खेत से निकल कर घर चल दिये।जो हमारे सहपाठी स्कूल गये थे उन्होंने हमारे घर मे शिकायत कर दी कि हम लोग स्कूल नहीं गये रास्ते मे छिपे थे।घर में बहुत डाँट मिली।मुह छिपाए इधर उधर घूम रहे थे।
उस समय रात को एक टीवी सीरियल आता था साँची पिरितिया मै अपनी मां के साथ देखने पहुंच गया।फिर क्या था मेरे बड़े भाई ने मेरी जमकर पिटाई की वो दिन आज भी मुझे याद हैं इसलिए मैं यह कहानी लिख रहा हूँ।अगले दिन स्कूल गया।स्कूल में भी खबर पहुंच गई थी।गुरु जी ने भी जमकर हमे धोया।और समझाया कि बेटा यह गलत काम है ऐसा गलत काम नही करना है।जिससे तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की बदनामी हो। सभी सहपाठियों के सामने हमारी नजर झुकी हुई थी।उस दिन कान पकड़ा की आज से ऐसी गलती नहीं करेगें।
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मोती
हमारे घर मे एक बिल्ली ने तीन बच्चों को जन्म दिया।दो बच्चे बहुत ही शरारती निकलने,वो किसी की पकड़ में नहीं आते थे।लेकिन एक कमजोर सा बच्चा पतला दुबला बच्चा हमारे परिवार के सदस्यों के पास आकर अपना पूंछ रगड़ने लगती।तो उस बच्चे के भाई अकेला पाकर उसे छिपाने की जगह ले जाते,बच्चे की माँ उसे मुँह से उठा कर छिपा कर आती ,लेकिन वो बच्चा मौका पाकर फिर निकल आता और हमारे बीच मे ही रहना पसंद करती थीं।तो हमने उस बच्चे को पालने की सोची।मंगलवार का दिन था लगभग शाम चार बजे उस बिल्ली के बच्चे का हम लोगों ने नाम रखने का प्लान बनाया।दिन मंगलवार था इसलिए म शब्द से नाम रखना उचित समझा गया, पूरे परिवार के लोगो की स्वेच्छा से मोती नाम रख दिया गया।मोती कमजोर थी इसलिए उसका खानपान में विशेष ध्यान दिया जाने लगा,कुछ ही दिन में मोती उछल कूद करने लगी।मोती के दोनों भाई अपनी माँ के साथ कही चले गए।मोती अब अकेले ही रह गई।
हम लोग स्कूल जाते तो मोती अपनी पूंछ हम सब के पैरों में रगड़ने लगती और म्याऊ म्याऊ कर चिल्लाने लगती थी मानो कहती हो मैं भी साथ चलूँगी।मोती का सबसे ज्यादा लगाव मेरी भतीजी नीलू से था वह उस पल भर के लिए नहीं छोड़ती थी नीलू कही चली जाती तो मोती घर, द्वार और छत में उसे ढूढ़ती रहती म्याऊ म्याऊ कर शोरगुल करती रहती।मोती सोती तो नीलू के बिस्तर में उसके पैरों के पास सोती थी।
जब हम लोग खाना खाने बैठते तो मोती हमारे सामने आकर बैठ जाती थीं।हम लोग मोती को खाना उसकी छोटी सी थाली में दाल देते थे तो वह बड़े चाव से अपना खाना खा लेती थी और उसे खाना चाहिए तो म्याऊ म्याऊ करने लगती,अगर उसका पेट भर गया तो वह उठ कर इधर उधर घूमने लग जाती थी।
मेरे घर के सभी सदस्यों का मोती से बड़ा लगाव था सिर्फ मेरे बड़े दादा जी को छोड़कर,वे थोड़ा ईर्षालु प्रबति के है वे सभी लोगों से ईर्ष्या रखते थे,तो वो मोती से जलते रहते थे।कोई अगर मोती को खाना देता तो वे उसे डाँटते थे,मोती भी उनसे ईर्ष्या करती थी।जब दादा जी कहना खाते तो मोती अपने दाँव में रहती थी मौका पाकर दादा जी के थाली से रोती निकाल लें जाती,दादा जी खपा हो जाते,तो मोती को मारने के लिए डंडा ढूढ़ते तो मोती छुप जाती थी।मोती के घर मे रहने से घर मे चूहों का आतंक कम था चूहे तो हमारे घर मे आने से डरते थे, जो गलती से आ भी जाता तो वापस नही जाता था वह मोती का आहार बन जाता।मोती का डर चूहों को बहुत ज्यादा था इसलिए वह हमारे घर के आसपास आने से भी डरते थे।
मोती के साथ आँख मिचौली खेलते हुए लगभग दो तीन साल बीत गए, मोती अब बड़ी हो चुकी थी।अगर कोई बिल्ला मोती से लड़ता तो हम लोग मोती को बचाने पहुँच जाते थे। चाहे दिन हो या रात पूरा परिवार एक जुट हो जाता था।हमारे पड़ोसी मास्टर साब थे वो मोती को कभी कभी पकड़ ले जाते,अपने नाती को खेलने के लिए मोती भाग आती तो वे उसे बाँध देते रस्सी से।न तो मोती को रस्सी से बंधना पसन्द था न हम लोगों को।हमने मास्टर सब से कह दिया कि मोती को ले जाओ मगर बंधने के लिए नही।मास्टर सब के नाती से भी मोती का बहुत लगाव हो गया था।वो दिन भर हमारे घर मे ही मोती के साथ खेलता रहता था।उस बच्चे की माँ उसे ले जाती तो वह खाना खाते ही वापस आ जाता था।
मोती बड़ी हो चुकी थी उसने दो बच्चों को जन्म दिया,अमूमन बिल्लियां जब बच्चों को जन्म देती है तो छिप कर देती है, लेकिन मोती ने सबके सामने बच्चों को जन्म दिया।जन्म के आधे घंटे में ही एक बच्चा भाग दौड़ करने लगा तो हम लोगों ने उसका नाम हिरनी रख दिया,दूसरे बच्चे का नाम मोरनी रख दिया।दोनों बच्चे अपनी मां के समान मनुष्य प्रिय वातावरण को खूब पसंद करते थे।दोनों बच्चों में अपनी मां की तरह ही हमसे घुलमिल गए थे।
समय बीतता गया एक दिन मोती अचानक गायब हो गयी,दोनों बच्चे पूरे घर मे अपनी माँ को खोजते रहे जब न मिली तो म्याऊ म्याऊ करके कभी हमारे पास आते तो कभी कमरो में जाकर खोजते और कभी छत में जाकर खोजते थे।मैने सोचा मोती कही गयी होगी घंटे दो घंटे में आ जायेगी,लेकिन जब शाम तक नही आई तो मोती की खोजबीन शुरू हुई लेकिन उसका पता न चला।सभी लोग उदास मन से बिना खाना खाएं ही सो गए।क्योंकि कभी मोती घण्टे दो घंटे से ज्यादा हमारी नजरो से दूर नही हुई थी, उसके बच्चे भी रात भर सोये नही अपनी मां को ढूढ़ते रहे।
लगभग पन्द्रह दिन बाद मोती आयी,उसका शरीर पिला पड़ चुका था।चलते समय वह लुढ़क कर गिर जा रही थीं, हम लोगों को उसकी हालत देखकर रोना आ रहा था।वो हमारे बीच मे आकर बैठ गई उसके बच्चे भी आकर मां को चाटने लगे, मोती म्याऊ म्याऊ कर रही थीं जैसे कह रही हो मेरे बच्चों का ख्याल रखना और लेट गई।हमने एक बोरी पर मोती को लिटा दिया औए उसे खाना दिया पर वो खाना न खा सकी।उसकी दोनों आँखे बंद हो रही थी। उसके बच्चे भी खाना नहीं खाये।मोती को बोरी से अच्छी तरह से ढक कर सभी लोग रात को सोने चले गए,मोती के दोनों बच्चे अपनी मां के पास ही बैठे रहे।सुबह जब उठ कर देखा तो मोती का शरीर निर्जीव पड़ा था,बच्चे म्याऊ म्याऊ कर रो रहे थे।
मेरे पूरे परिवार वालों के आँखों मे आँसू आ गए।हमने घर से बाहर खेत मे एक गड्ढा खोदा और उस नन्हें से मृत लघु गात को मिट्टी में दफना दिया। उस दिन हमारे परिवार शोक में डूबा रहा।
समय बढ़ा हिरनी और मोरनी बहुत शरारत करने लगी। मेरे दादा जी उनसे परेशान हो गए अपने घर से दूर दूसरे टोला में दो बिल्लयो को छोड़कर आ गए शाम को दोनों वापस आ गयी दो दिन बाद दूसरे गांव में छोड़ आये।वहीं हम पढ़ने जाते थे हम लोगों रोज उस गाँव मे पता लगाते की दो बिल्लयो को जो मेरे दादा जी छोड़ कर गये है किसी को दिखे तो बताना।एक दिन मोरनी कुए में गिर गई उस गाँव के लोगो ने उसे निकाला ।हमने वहीं हिरनी को भी देखा वह हमें देखकर हमारे पास आ गई।दोनों बिल्लयो को हम घर ले आये ।मेरे दादाजी हमें डाँटने लगे।तो मेरी बड़ी मां ने दादा जी से बहुत लडाई किया कि वो बिल्ली के बच्चे आपका क्या बिगाड़ा है।उस दिन से दादा जी उन दोनों बिल्लयो हिरनी और मोरनी को कुछ भी नहीं कहते थे।हम लोग मोती के बच्चों के साथ बहुत खुश रहने लगे।
वकील
समय बीतने लगा।वकील की पत्नी बीमार रहने लगी।तो वकील बेटे की देखभाल के लिए बेटे को खेतो में ले जाता और जब खेत जोतना हो तो उसे अपनी पीठ में बेटे को बाँध कर खेत जोतता।बेटे को एक पल के लिये जमीन में नही रखता था।बेटे को रोता नही देख सकता था। दोनों बेटिया बड़ी होने लगी घर के काम मे हाँथ बटाने लगी थी।चन्द्र शेखर भी अब बड़ा होने लगा। चन्द्र शेखर अब पढ़ने जाने लगा।चन्द्र शेखर एक होनहार लड़का था,पढ़ने लिखने में अब्बल आता था।और वह संस्कारी बालक था ।
समय बीतता गया एक दिन वकील की पत्नी का स्वर्गवास हो गया ,वकील के घर मे एक दुःखो का पहाड़ टूट पड़ा।पूरा परिवार शोकाकुल था।गाँव के लोगों ने वकील को धीरज बँधाया। पूरे परिवार का भार अब वकील के कन्धों पर आ गया था।अब बेटियां बड़ी हो चुकी थी। शादी की जिम्मेदारी पिता को निभाना था।वकील ने पहले बड़ी बेटी की शादी की।फिर एक दो साल बाद छोटी बेटी का भी हाथ पीला कर दिया। बेटिया अपने अपने घर मे खुश थी।वकील बेटियों की शादी कर गंगा नहाने चले गए।।अब वकील की जिम्मेदारी सिर्फ बेटे की शादी करना और नाती पोतो सँग समय बिताना, वकील ने सुंदर सुशील लड़की ढूढ कर बेटे की शादी बड़ी धूमधाम से कर दी।वकील और उसका परिवार ख़ुशी से जीवन व्यतीत करने लगे।
समय बीतता गया वकील का बुढ़ापा आ गया घर परिवार की जिम्मेदारी चन्द्रशेखर के कंधों पर आ गई, चन्द्र शेखर दिन भर खेतों में काम करता शाम को पिता से अपना दुख शुख बताता।चंद्रशेखर के अब दो बच्चे हो गये थे बेटे का नाम रामु और बेटी का नाम रेणु रखा था वकील का सारा समय बच्चों में ही लगा रहता था।
समय और बिता वकील का बुढ़ापा और बढ़ा।वकील का शरीर कमजोर हो गया और कई बीमारियों का घर हो गया ।खांसी चौबीस घंटे आती हाँफने लगते। दुखी होकर भगवान से कहते कि हमें अब उठा लो प्रभु। अब ये जीवन का कष्ट नही सहा जाताहैं ।कुछ दिन और बीते तो बिस्तर पकड लिया।बेटे ने बहुत दवा करवाया पर कोई आराम नही मिला।बेटा दवा से परेशान रहने लगा।पिता को समय भी नही दे पाने लगा।इसलिए वकील और चिन्तित रहने लगे।बिस्तर में ही टट्टी पेशाब भी हो जाता तो कभी कभी चंद्रशेखर डाँट भी देता था।बहु भी खरीखोटी सुना देती थीं।वकील चलने के लिये असहाय हो गये थे लाठी के सहारे चलते तो दस कदम में ही हाँफने लगते फिर रुक कर आराम करते फिर चलते।ये कस्टदायीं दिन उनसे सहन न होते।दिनभर बिस्तर में पडे रहना।उनसे सहन न होता था।कोई भी देखरेख करने वाला भी नहीं रहता क्योंकि बेटा बहु खेतो के काम मे चले जाते ,नाती पोते स्कूल चले जाते।बिस्तर खराब होने पर डाँटते भी।
एक दिन वकील ने एक बहुत ही कड़ा निर्णय लिया आत्महत्या करने का।सुबह सुबह जल्दी से उठ कर खड़े हुए अपनी लाठी उठाया और घर से निकल पड़े।जो आदमी बिस्तर से उठ नहीं सकता था वो आज न जाने कैसे उठ खड़ा हुआ।छोटे छोटे कदमों से लाठी के सहारे चल दिये हफ़ते हुए।कदम कभी दाये तो कभी बाये जा रहे थे।जब थक जाते तो रुक जाते फिर चलते फिर रुकते ऐसे करते हुए गाँव के बाहर एक पुराने खंडहर घर के पास पहुंचे, थोड़ा रूके।
खण्डहर घर के ऊपर बिजली का तार गया हुआ था।जो आदमी बिस्तर से उठ नहीं सकता था आज वो इतनी दूर गाँव के बाहर खंडहर के पास आ गया।और टूटी हुई दीवार से चड़ कर बिजली का तार पकड़ लिया ।लेकिन भगवान को कुछ और मंजूर था वकील के तार पकड़ते ही बिजली चली गयी।गाँव के लोगों ने यह देख लिया।यह ख़बर जब चन्द्र शेखर को पता चली तो आननफानन आ गया ,पिता की ये हालत का जिम्मेदार स्वंय को मानकर रोने लगा।गाँव के लोगों ने चन्र्द शेखर को याद दिलाया कि जब वो पैदा हुआ था तो वकील नके ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।वो खेतो में पीठ में बांध कर काम करता था। उसकी बहुत अच्छे से देखभाल करते थे।
यह सुनकर चन्र्द शेखर को अपनी करनी पर पछतावा हुआ,कि अपने पिता की सेवा भी नही कर सका,वो रोते हुए बोला,पिता जी मुझे माफ़ कर दो मैं आपकी सेवा नहीं की।आज से यह गलती नहीं करूंगा।मेरी वजह से आपने इतना बड़ा फैसला लिया।आपके बिना मैं किसके सहारे रह पाउँगा।यह देखकर वकील भी रोने लगे।बेटे को गले लगा लिया।उन्होंने बेटे से कहा आज से मैं भी ऐसी गलती नहीं करूंगा।चन्र्द शेखर ने पिता को लेकर घर गये उनकी सह्रदय सेवा की ।चन्र्द शेखर और उसका परिवार आज बहुत दिनों बाद एक साथ था।यह देखकर वकील बहुत खुश थे ।सभी ने आज वकील की खूब सेवा की थी और वादा की आज से वकील की सेवा करगें।जब सुबह ऊठे तो चन्र्द शेखर पिता के पास गया तो पिता जी सो रहे थे उनके चेहरे के भाव से लग रहा था कि वो आज चैन की नींद सो रहे हो।जब चन्द्र शेखर ने पिता जी को बुलाया तो वे नही बोले ,दो तीन बार बुलाने पर नही बोले तो चन्द्रशेखर ने हिलाया और पिता जी कहा वो हिले भी नही।वकील की आत्मा आज परमात्मा से मिल चुकी थी।चंद्रशेखर रोने लगा।आज वकील की आत्मा परमात्मा में विलीन हो गयी। ये खबर गाँव वालों और रिश्तेदारो में ये बात पहुँच गयी।सभी लोगों ने आकर अंतिम संस्कार में शामिल हुए।गाँव के लोगों ने कहा वकील की आत्मा को शांति मिले, और अंतिम संस्कार में आये लोगों की भीड़ कम होती चली गई
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श्यामा दादी
वो बूढ़ी औरत बेटे के इंतजार में खाती पीती न थी।और सोती भी नहीं थीं।बेटे के बिरह में असमय बूढ़ी हो गयी।कमर झुक गयी थी।बच्चों सी हालात हो गयी थी।पूरा शरीर सिर्फ हड्डियों का ढांचा रह गया था।बालो में जैसे लाते बन गई थी।रामू के पिता खाना बनाते तो वो खा लेती। वरना पगली सी पड़ी रहती थी।कभी मन हुआ तो कम कर लेती,खाना बना लेती।वरना बेसुध हो पड़ी रहती और अपने आप बड़बड़ाती रहती थी।मेरा रमुआ आयेगा और मैं उसकी शादी करुँगी।आज अचानक न जाने कहा से उस बूढ़ी औरत के जान आ गयी।जो वह इस तपती दोपहर में यह तक नंगे पांव आ गयी।
रामू के पिता माला और कौड़ियों की दुकान लगाते थे थोड़ा बहुत कमाई हो जाती।उसी से उन दोनों का गुजारा हो जाता था।रामू के पिता साधू भी थे। गेरुआ वस्त्र पहनते थे।श्यामा दादी इस दोपहरी में मकाम मालकिन से सौ रुपये माँगने आयी थी।श्यामा दादी ने कहा बहू सौ रुपए दे दो तो रमुआ के बापू मुम्बई से रमुआ को बुला लाये।मैं यह सुनकर भौचक्का रह गया।
मकान मालकिन ने पूछा सौ रुपये में तो बाँदा भी नही जा पाएगे रमुआ के बापू।वो साधू है रेल में किराया नही लगेगा ।मकान मालकिन ने सौ रुपये दिए और बोली कि और रुपये तो नही चाहिए श्यामा।वो बोली नहीं बहू वापस भी तो करने है।और वो सौ रुपये लेकर श्यामा हफ़ते हुए अपने घर की तरफ भागी।शाम को ही रमुआ के बापू मुम्बई के लिये रवाना हो गए । श्यामा दादी के खुशी का ठिकाना नही था। उसने रमुआ के बापू को रास्ते मे खाने के लिए सत्तू भर दिया और साथ मे नमक और पीसी मिर्ची भी दाल दिया।रमुआ के बापू की कद कंठी भी छोटी थी।वह भी शरीर से कमजोर थे।शिर में जाता थीऔर चेहरे में दाड़ी और मुछ।तन पर गेरुआ वस्त्र था और हाँथ में एक लकड़ी का सहारा लेकर वो मुम्बई निकले थे। श्यामा पड़ोसी बच्चों को बुलाई और बोली मेरे बेटा रमुआ को लेने उसके बापू गए हैं।मेरा बेटा आ जायेगा उसकी शादी होगी मेरी बहू आएगी। मेरे छोटे छोटे नाती पोतों होंगे।मैं उनके साथ खूब खेला करुगी।तुम सभी को भी बेटे की शादी में बुलाऊंगी।तुम सब लोग आना।एक बच्चे ने तोतली बोली में बोला श्यामा तुम्हाला बीटा कितना बड़ा होगा।
श्यामा ने कहा मेरा रमुआ तेरे बापू के बराबर का होगा।तेरे बापू से एक साल बड़ा था मेरा रमुआ।
श्यामा दादी छोट छोटे बच्चों को इकट्ठा कर लेती मंदिर में उन्हें ले जाती और बच्चों के साथ में पूजा पाठ करती थी।बच्चो से श्यामा का बड़ा ही लगाव था।शाम को पड़ोसी बच्चों को मंदिर में लेकर कीर्तन करती थी।और दुआ माँगती थी कि मेरा बेटा वापस आ जाये।आज उसकी मनोकामना पूरी होने वाली थी।
श्यामा दीदी के दो छोटे-छोटे कमण्डल थे।जिनमे वो पानी भरने जाती थी।घर से हैंडपंप दो तीन सौ मीटर की दूरी पर था।वह हैंडपंप नही चला पति थी।कोई न कोई आदमी नल से उनका पानी भर देता था।कमण्डल उठा कर श्यामा दादी चल देती थी।जब थक जाती तो कमण्डल का पानी पीने लगती।फिरकुछ दूर जाती फिर रुक जाती पानी पीती।कोई मिल जाता तो बताने लागली मेरा बेटा रमुआ आ जायेगा।उसकी शादी बड़ी धूमधाम से करुँगी।नाती पोते होंगे। मैं उनके साथ खेला करुँगी। आज उसके जर्जर शरीर मे बेटे के आने की खुशी में जान आ गयी थी।
लगभग एक महीना दरबदर रामु के पिता भटकते रहे तब जा कर मुम्बई में रामू मिल गया।रामू को उसके पिता मुम्बई से लिवा कर आ गए।श्यामा के खुशी का कोई ठिकाना न रहा।उसने जल्दी से खाना बनाया।बाप और बेटे को खाना खिलाने लगी।श्यामा के आँखों से आँसू आ गए।जो थमने का नाम नही ले रहे थे। बेटे से पूछा बेटा तुन्हें मेरी याद नहीं आयी कभी बेटा।बेटे ने कहा याद तो बहुत आती थीं माँ।पर मैं वापस नहीं आ पाया।बेटा भी रोने लगा ,माँ की इस हालत को देखकर श्यामा की इस हालत का जिम्मेदार रामु ही था।श्यामा अब रोज सुबह जल्दी खाना बना देती।बहुत खुश रहने लगी।
श्यामा दादी हर रोज की तरह पानी भरने जाती थी।अपने कमण्डल में ,पानी भरकर वापस आ रही थी थक कर पानी पीने लगी,अचानक एक गाड़ी ने टक्कर मार दी। श्यामा दादी गिर पड़ी उनके शिर से खून आने लगा था । कुछ लोगों में उन्हें उठा कर देखा की वो बेसुध पड़ी थी उनका शरीर निर्जीव हो चुका।वहा खड़े लोगों के आँखों मे आँसू आ रहे थे।एक आदमी ने कहा श्यामा दादी की जो इच्छा थी वो पूरी हो गयी कि बेटे को देख लिया अभगन ने।तब दूसरे आदमी ने कहाअंतिम इक्छा रह गई बेचारी की बेटे की शादी और बहू नाती पोते के साथ खेलना।और भीड़ धीमें धीमे गमशीन पलके लिए चली गयी।
एक दिन रमेश होटल में गया।जहाँ उसका दोस्त श्याम काम करता था।रमेश ने सोचा चलो आज श्याम के होटल में जी भर कर खाना खा लेते हैं।बिल तो मेरा दोस्त श्याम ही भरेगा।
लेकिन रमेश को क्या मालूम था।कि अगर उसने होटल जी भरकर खाना खा लिया, तो होटल मालिक श्याम की एक दिन की पगार काट लेगा।
जब बिल भरने की बारी आयीं।तो रमेश ने अपने दोस्त श्याम की तरफ इशारा करते हुए कहा,"यह मेरा दोस्त श्याम हैं।
श्याम ने कहा,"मैं मेरा दोस्त है।मैं इशारे में कहा बिल भर दूँगा।
रमेश श्याम से कहा,"दोस्त मैं आता रहूँगा।
श्याम ने कहा ,"जरूर आना दोस्त।
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जब रमेश होटल से बाहर निकल रहा था।तो उसे होटल मालिक की आवाज सुनाई दी।
रमेश रुककर बात सुनने लगा।
होटल मालिक ने श्याम से कहा कि यह होटल तेरे आवारा दोस्तो को मुक्त में खाना किलने के लिये नही हैं।
कोई भी मुँह उठाकर चला आता हैं।आज के बाद तू अपने कोई दोस्त को मुक्त में खाना खिलाने के लिये बुलाया तो तुझे मैं काम से निकाल दूँगा।फिर मुक्त में खाना खिलाते रहना।
श्याम बोला सर मुझे माफ़ कर दो।वह मेरा सबसे जिगरी दोस्त हैं।मैं उसे कैसे मना करता।उसके दिल मे चोट लगती।
होटल मालिक गुस्सा हो गया।बोला तुझे अपने दोस्त की फ़िक्र हैं।तो तू उसी के पास जा।कल से काम पर नही आना।
होटल मालिक ने श्याम को काम से निकाल दिया।
रमेश भी धीरे से अपने घर आ गया।यह बात उसने श्याम को जाहिर नही होने दिया।
रमेश के दिल मे होटल मालिक के बात का बड़ा धक्का लगा था।
जब अगले दिन श्याम होटल में काम करने नही गया।तो रमेश ने उससे पूछा आज होटल नही गया श्याम।
श्याम ने कहा नही दोस्त ,मैं होटल में काम छोड़ दिया।
रमेश ने पूछा,"क्यों?
श्याम ने कहा ,"बस ऐसे ही।लेकिन उसने रमेश से कोई बात न बताई।
रमेश को मालूम तो था ही।वह निरास होकर अपने घर आ गया।
रमेश के पास पैसा तो बहुत था।उसने सोचा कि श्याम को एक होटल खोलकर देता हूँ।जिससे वह खुश हो जाएगा।और मेरी गलती का पश्चाताप भी हो जाएगा।
रमेश ने एक चौराहे पर एक दुकान खोल दी।और उसने श्याम को बुलाकर कहा।श्याम मुझे तेरे होटल में मुक्त खाना खाना हैं।
श्याम ने रमेश से कहा,"भाई मैं यह होटल नही चला पाऊंगा।
लेकिन जब रमेश समझाया तो श्याम मान गया।और बोला दोस्त मैं तुम्हारे इस एहसान का बदला कैसे चुकाऊंगा।
रमेश बोला मैं रोज तुम्हारे होटल में मुक्त का खाना खाने आऊँगा।
दोनो दोस्त हँसने लगे,और एक दूसरे को गले लगा लिया।
एक दोस्त दूसरे दोस्त की जरूर मदद करता हैं।
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